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रामायण: Difference between revisions

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Source book: https://nepalikitab.org/review-bhanu-bhakta-ramayan/
Source book: https://nepalikitab.org/review-bhanu-bhakta-ramayan/
==पुस्तक परिचय==
==पुस्तक परिचय==
नेपाशी”'
नेपाशी”'
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वाणी प्रष्त
वाणी प्रष्त
अभाकर तिलयम्‌', ४०५|१२५, चौपटियाँ रोड) लखनठ--२२६००३
अभाकर तिलयम्‌', ४०५|१२५, चौपटियाँ रोड) लखनठ--२२६००३
ग्रन्थ- विमौचेच
 
==ग्रन्थ- विमौचेच==
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कर्नाटक प्रदेश के महामहिम राज्ययाल . हिश्री पं० उमाशंकर दीक्षित के 00कर-कमलों ढ्वारा॥
कर्नाटक प्रदेश के महामहिम राज्ययाल . हिश्री पं० उमाशंकर दीक्षित के 00कर-कमलों ढ्वारा॥
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। यु मुनरव को ५
। यु मुनरव को ५
विषय-सूचौं
 
==विषय-सूचौं==
विषय . पृष्ठ-संख्याग्रन्थ-विमोचन--महामहिम राज्यपाल श्री उमाशंकर दीक्षित ३विषयसूची ४माल्यापँण डाँ० राजेनद्रकुमारी बाजपेयी ष्समपेण ६भारत-नेपाल सैत्ली युग-युग सम्म अमर रहोस्‌ ७उपहार परप्रकाशकीय ९-१६आमुख--अनुवाद १७ग्रन्थारम्भ एवं ' श्रीरामपञ्चायतन " का चिल्न १५बालकाण्ड १९अयोध्याकाण्ड ५४अरण्यकाण्ड पाकिष्किन्धाकाण्ड ११२सुन्दरकाण्ड , - १४७युद्धकाण्ड ॥ - १०५
विषय . पृष्ठ-संख्याग्रन्थ-विमोचन--महामहिम राज्यपाल श्री उमाशंकर दीक्षित ३विषयसूची ४माल्यापँण डाँ० राजेनद्रकुमारी बाजपेयी ष्समपेण ६भारत-नेपाल सैत्ली युग-युग सम्म अमर रहोस्‌ ७उपहार परप्रकाशकीय ९-१६आमुख--अनुवाद १७ग्रन्थारम्भ एवं ' श्रीरामपञ्चायतन " का चिल्न १५बालकाण्ड १९अयोध्याकाण्ड ५४अरण्यकाण्ड पाकिष्किन्धाकाण्ड ११२सुन्दरकाण्ड , - १४७युद्धकाण्ड ॥ - १०५
उत्तरकाण्ड 1000 २०१
उत्तरकाण्ड 1000 २०१
परमविदुषी डाँ० राजेन्द्रकुमारी वाजपेयी
 
==परमविदुषी डाँ० राजेन्द्रकुमारी वाजपेयी==
 
भै“ केस अन सं कककललकलक छठ छलप्ठठरीहै
भै“ केस अन सं कककललकलक छठ छलप्ठठरीहै
कद छुँ पक नेपाली काव्य क; ईन
कद छुँ पक नेपाली काव्य क; ईन
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२९ जून, १९७६ 0 ३००९रथयात्वा दिवस ति ७10
२९ जून, १९७६ 0 ३००९रथयात्वा दिवस ति ७10
प्रतिष्ठाता--भुवन वाणी ट्रस्ट, लखवञ--२
प्रतिष्ठाता--भुवन वाणी ट्रस्ट, लखवञ--२
ह्ति
 
==समर्पण==
श्री भानुभक्त !
श्री भानुभक्त !
संस्कृत भापा म ही परिसीमित पुप्कल रामचरित्को, विभिन्न भापाई अञ्चलो के अन्य रामायण-रचयिताओंकी भाँति, आफ्ने भी जतभापा मैं प्रस्तुत करके, सामान्यजनता के प्रति अनन्य उपकार किया हे ।
संस्कृत भापा म ही परिसीमित पुप्कल रामचरित्को, विभिन्न भापाई अञ्चलो के अन्य रामायण-रचयिताओंकी भाँति, आफ्ने भी जतभापा मैं प्रस्तुत करके, सामान्यजनता के प्रति अनन्य उपकार किया हे ।
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श्री ९ महाराजाधिराज वीरेन्द्र विक्रमशाहृदेव, नेपाल को भारत कीओर से सस्नेह्‌ उपहार ।
श्री ९ महाराजाधिराज वीरेन्द्र विक्रमशाहृदेव, नेपाल को भारत कीओर से सस्नेह्‌ उपहार ।


प्रस्तावना
==प्रस्तावना==
वाणी, भाषा और लिपि,
वाणी, भाषा और लिपि,
मन के भावों और उद्गारों को मुख से प्रकट करना, यही वाणीहै। पशु, पक्षी अथवा मन्नुष्यो मै जब कोई वग, एक प्रकार की वाणीबोलता है, उस बोली से परस्पर भावों को कहता, सुनता और समझताहै, तब वाणी के उस 'प्रकार' को उस विशिष्ट-वगै की भाषाकी संज्चादीजाती है। और उसी भाषाको जब चिल्लों-आक्नतियों मैं लिखकर प्रकटकिया जाता है, तब उन्ही चिल्लो और आक्नतियों को उस भाषा-विशेष कीलिपि कहा जाता है। २
मन के भावों और उद्गारों को मुख से प्रकट करना, यही वाणीहै। पशु, पक्षी अथवा मन्नुष्यो मै जब कोई वग, एक प्रकार की वाणीबोलता है, उस बोली से परस्पर भावों को कहता, सुनता और समझताहै, तब वाणी के उस 'प्रकार' को उस विशिष्ट-वगै की भाषाकी संज्चादीजाती है। और उसी भाषाको जब चिल्लों-आक्नतियों मैं लिखकर प्रकटकिया जाता है, तब उन्ही चिल्लो और आक्नतियों को उस भाषा-विशेष कीलिपि कहा जाता है। २
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[1 १४,]
[1 १४,]
भै पवनार आश्वम (वर्धा) मैं होनेवाले 'नागरी लिपि' समारोह मैं भारत मैंनेपाली दूतावास के सांस्कृतिक सहचारी प्रो श्री मानन्धर घूस्वाँ सायमि नेभाग लिया था। उन्होने भपने भापण मैं चा की कि प्रथम बार दिल्लीआने पर, उनकी धर्मपत्ती ने हिन्दी साइनबोरडो पर दुप्टि डालकर बढेकुतृहल से कहा, “अरे ! यहाँ तो ये सारे बोडे नेपाली" म लिखे हुए हँ! " ।सारांश यह कि नेपाल की सम्प्रति लिपि नेपाली है, उसका खुपवहीहैजोनागरी लिपिका। - ०
भै पवनार आश्वम (वर्धा) मैं होनेवाले 'नागरी लिपि' समारोह मैं भारत मैंनेपाली दूतावास के सांस्कृतिक सहचारी प्रो श्री मानन्धर घूस्वाँ सायमि नेभाग लिया था। उन्होने भपने भापण मैं चा की कि प्रथम बार दिल्लीआने पर, उनकी धर्मपत्ती ने हिन्दी साइनबोरडो पर दुप्टि डालकर बढेकुतृहल से कहा, “अरे ! यहाँ तो ये सारे बोडे नेपाली" म लिखे हुए हँ! " ।सारांश यह कि नेपाल की सम्प्रति लिपि नेपाली है, उसका खुपवहीहैजोनागरी लिपिका। - ०
भाचुअक्त रासायण
भाचुअक्त रासायण
जन साधारण की यह घारणा है कि नेपाल मै शिव और शक्तिकीउपासना काही प्राधान्यप है। भगवान्‌ रामको चर्चा, यदिहैभी तोनगण्यसी । संयोग से उत्तरप्रदेश ग्रन्थ अकादमी के तत्कालीन: अध्यक्षप्रख्यात विद्वान्‌ डाँ० रामकुमार वर्मा जी से एक बार भेट हुई । मेरै औरभुवन वाणी ट्रस्ट के भापाईं सेतुवन्ध के विपुल कार्य को देखकर वे अतिमुग्ध हुए । उन भापाई कार्यो में, देश के समस्त भापाई रामायण-साहित्यको चागरी लिपि के माध्यम से, एक मञ्च पर आते देखकर, उन्होने“भानुभक्त रामायण की मुझसे चर्चा की । उनके सुझाव पर ही नेपालीका यह ग्रन्थरत्न “भानुभक्त रामायण', आज पाठको के सम्मुख प्रस्तुत है।
जन साधारण की यह घारणा है कि नेपाल मै शिव और शक्तिकीउपासना काही प्राधान्यप है। भगवान्‌ रामको चर्चा, यदिहैभी तोनगण्यसी । संयोग से उत्तरप्रदेश ग्रन्थ अकादमी के तत्कालीन: अध्यक्षप्रख्यात विद्वान्‌ डाँ० रामकुमार वर्मा जी से एक बार भेट हुई । मेरै औरभुवन वाणी ट्रस्ट के भापाईं सेतुवन्ध के विपुल कार्य को देखकर वे अतिमुग्ध हुए । उन भापाई कार्यो में, देश के समस्त भापाई रामायण-साहित्यको चागरी लिपि के माध्यम से, एक मञ्च पर आते देखकर, उन्होने“भानुभक्त रामायण की मुझसे चर्चा की । उनके सुझाव पर ही नेपालीका यह ग्रन्थरत्न “भानुभक्त रामायण', आज पाठको के सम्मुख प्रस्तुत है।
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इस ग्रत्य मै किया गया । प्रशंसित ट्रस्ट एवं न्यासीगण के प्रति हमअतिशय क्षृतज्ञ हैँ।
इस ग्रत्य मै किया गया । प्रशंसित ट्रस्ट एवं न्यासीगण के प्रति हमअतिशय क्षृतज्ञ हैँ।
मुख्यन्यासी सभापति,भुवन वाणी ट्रस्ट, लखनञ-३
मुख्यन्यासी सभापति,भुवन वाणी ट्रस्ट, लखनञ-३
भानुभक्त-रामायण
 
==भानुभक्त-रामायण==
(नेपाली काव्य) »[अनुवादक--नन्दकुमार आमात्य]
(नेपाली काव्य) »[अनुवादक--नन्दकुमार आमात्य]
आमग्ुरव
आमग्ुरव
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झज£27£5725ई
झज£27£5725ई
0000 2010 0000 मई
0000 2010 0000 मई
भानजत्तन्राजवयण
 
चारकाणड ,, नब्रह्या-सारद-सँवादे पय र निएक्‌ दिन्‌ नारद सत्यलोक्‌ पुगिगया : लोक्‌को गर्छ हिंत्‌ भी ।ब्रह्मा ताहि थिया पच्या चरणमा'' खुशी गराया पनि ॥क्या'सोध्छौ तिमि सोध भन्छु म भनी मर्जी भयेथ्यो-, गजंसै 1?
==भानजत्तन्राजवयण==
चारकाणड ,, नब्रह्या-सारद-सँवादे पय र नि
एक्‌ दिन्‌ नारद सत्यलोक्‌ पुगिगया : लोक्‌को गर्छ हिंत्‌ भी ।ब्रह्मा ताहि थिया पच्या चरणमा'' खुशी गराया पनि ॥क्या'सोध्छौ तिमि सोध भन्छु म भनी मर्जी भयेथ्यो-, गजंसै 1?
ब्रह्माको करुणा बुझेर क्रषिलेहेत्रह्मा !..जति हुन्‌ गुभाशुभ सबै
ब्रह्माको करुणा बुझेर क्रषिलेहेत्रह्मा !..जति हुन्‌ गुभाशुभ सबै
बाँकी' “छैन .तथापि.. सुन अहिले.'
बाँकी' “छैन .तथापि.. सुन अहिले.'
Line 732: Line 743:
मै विनती कीकि मेरी पत्नी वृद्धा है और उसके मन में किचित्‌ मात्नभी भक्ति नहीं है। अतः दशँन देने के लिए सीताजी अन्दर पधारने कीकृपा करेँ, जिससे सीताजी के दशंन प्राप्त कर बुढिया को जन्म के फलप्राप्तह्रो जायें। १२० अत्ति की विनती सुन-कर श्रीराम ने सीताको अन्दर जानेकी आज्ञादी। अत्तिकी पत्नी से भेंट करके अब तुमशीघ्र ही लौटआओ। अपने नाथ की आज्ञा पाकर प्रसच्चहो सीताअन्दर गई और अप्यन्त वृद्धा अत्लि-पत्नी से भेंट की। १२१ सीतानेपैरों पर सिर रख कर वृद्धा के प्रति अत्यन्त प्रेम प्रदशित किया। अव्वि-पत्नी ने सीता जी को जोड्-कुण्डल और साडी देकर उवटन का लेप कियाऔर कहा कि इससे तुम्हारे शरीर की शोभा स्थिर रहेगी । इस प्रकारसीता जी को आसीस देकर अनसूया को अत्यन्त हं प्राप्त हुआ । १२२सीता एवं लक्ष्मण-तहित राम को भोजन कराने के लिए विविध प्रकारके भोजन तँयार किये। भोजन कराके रघुनाथकी माया को समझकर त्रटुषि तथा उनकी पत्नी दोनों ने राम-क्रीति के गीत गाये । १२३
मै विनती कीकि मेरी पत्नी वृद्धा है और उसके मन में किचित्‌ मात्नभी भक्ति नहीं है। अतः दशँन देने के लिए सीताजी अन्दर पधारने कीकृपा करेँ, जिससे सीताजी के दशंन प्राप्त कर बुढिया को जन्म के फलप्राप्तह्रो जायें। १२० अत्ति की विनती सुन-कर श्रीराम ने सीताको अन्दर जानेकी आज्ञादी। अत्तिकी पत्नी से भेंट करके अब तुमशीघ्र ही लौटआओ। अपने नाथ की आज्ञा पाकर प्रसच्चहो सीताअन्दर गई और अप्यन्त वृद्धा अत्लि-पत्नी से भेंट की। १२१ सीतानेपैरों पर सिर रख कर वृद्धा के प्रति अत्यन्त प्रेम प्रदशित किया। अव्वि-पत्नी ने सीता जी को जोड्-कुण्डल और साडी देकर उवटन का लेप कियाऔर कहा कि इससे तुम्हारे शरीर की शोभा स्थिर रहेगी । इस प्रकारसीता जी को आसीस देकर अनसूया को अत्यन्त हं प्राप्त हुआ । १२२सीता एवं लक्ष्मण-तहित राम को भोजन कराने के लिए विविध प्रकारके भोजन तँयार किये। भोजन कराके रघुनाथकी माया को समझकर त्रटुषि तथा उनकी पत्नी दोनों ने राम-क्रीति के गीत गाये । १२३
अयोध्याकाण्ड समाप्त
अयोध्याकाण्ड समाप्त
अरण्यकाण्ड
 
 
==अरण्यकाण्ड==
 
अत्नीका आश्रसैमा बसि खुपतिले प्रेमले दिन्‌ बिताई।दोस्रा दित्तमा सबेरै उठिकन बनमा जान मन्‌सुव्‌ चिताई ॥अत्वीजीका नजीक्‌मा गइकन अब ता जान्छु बीदा म पाऔँ।रस्ता यो जाति होला भनिकन कहन्या एक्‌ अगूवा म पाउँ ॥। १।॥
अत्नीका आश्रसैमा बसि खुपतिले प्रेमले दिन्‌ बिताई।दोस्रा दित्तमा सबेरै उठिकन बनमा जान मन्‌सुव्‌ चिताई ॥अत्वीजीका नजीक्‌मा गइकन अब ता जान्छु बीदा म पाऔँ।रस्ता यो जाति होला भनिकन कहन्या एक्‌ अगूवा म पाउँ ॥। १।॥
सीताराम्‌को हुकम्‌ यो सुनिकन क्रषिले भन्दछन्‌ क्या -वताजँँ ।सब्‌्को रस्ता त देख्न्या यहि हजुर भन्या कुन्‌ अगुवा खटाउँ॥चिन्छु लीला हजुर्‌को तरपत्ति अगुवा याहि अस्सल्‌ खटाई ।यै सर्जी पुर्ण गर्ताकत पनि अगुवा आज दिन्छु पठाई ॥ २ ॥
सीताराम्‌को हुकम्‌ यो सुनिकन क्रषिले भन्दछन्‌ क्या -वताजँँ ।सब्‌्को रस्ता त देख्न्या यहि हजुर भन्या कुन्‌ अगुवा खटाउँ॥चिन्छु लीला हजुर्‌को तरपत्ति अगुवा याहि अस्सल्‌ खटाई ।यै सर्जी पुर्ण गर्ताकत पनि अगुवा आज दिन्छु पठाई ॥ २ ॥
Line 1,294: Line 1,308:
बालुमुख्‌ पीत शरीर्‌ गरी गिरिउपर्‌ जल्दी हनूमान्‌ गया ।सब्‌ प्राणीहरुले तहाँ ति हनुमान्‌- जीलाइ हेर्दा भया ॥१४३॥" ।॥॥ किष्किन्धाकाण्ड समाप्त ॥
बालुमुख्‌ पीत शरीर्‌ गरी गिरिउपर्‌ जल्दी हनूमान्‌ गया ।सब्‌ प्राणीहरुले तहाँ ति हनुमान्‌- जीलाइ हेर्दा भया ॥१४३॥" ।॥॥ किष्किन्धाकाण्ड समाप्त ॥
हनुमान शीघ्र ही पर्वत के झपर चले गये और सब प्राणी हनुमान कोदेखने लगे । १४३किष्किन्धाकाण्ड समाप्त
हनुमान शीघ्र ही पर्वत के झपर चले गये और सब प्राणी हनुमान कोदेखने लगे । १४३किष्किन्धाकाण्ड समाप्त
सुन्द्र काण्ड
 
==सुन्दर काण्ड==
तर्छ क्षार समुद्र आज सहजै भन्त्या इरादा धरी।श्रीरामूका चरणारविन्द॒ मनले अप्यन्त चिन्तन्‌ गरी ॥भन्छन्‌ वीर्‌हरुलाइ ताहि हनुमान्‌ हे वीर हो! पार्‌ तरी ।सीताजीकन भेट्तछ्‌ म अहिले जान्छ्‌ बडो वेग्‌ धरी ॥१॥पापी जन्‌ पनि रामका स्मरणले संसार पार्‌ तछँ ता।रामूकै काम तिमित्त औंठि सँग ली जान्छु दुतै हँमता॥क्या डर्‌ क्षार समुद्र तन सहजै पौँचन्छु लंका भनी।चारै पाउ जमिन्‌ विषे धसि कुद्या हेर्दै तमसा पति ॥२॥दक्षिण्‌ तरफ्‌ मुख गरीकन कुद्न वस्ता।अपर्‌ नजर्‌ दि अघिका दुइ पाउ धस्ता॥सोझो गराइकन घाँटि कुद्या जसै ता।वाग्रु सरी हुन्‌ गया हनुमान्‌ तसै ता॥३॥
तर्छ क्षार समुद्र आज सहजै भन्त्या इरादा धरी।श्रीरामूका चरणारविन्द॒ मनले अप्यन्त चिन्तन्‌ गरी ॥भन्छन्‌ वीर्‌हरुलाइ ताहि हनुमान्‌ हे वीर हो! पार्‌ तरी ।सीताजीकन भेट्तछ्‌ म अहिले जान्छ्‌ बडो वेग्‌ धरी ॥१॥पापी जन्‌ पनि रामका स्मरणले संसार पार्‌ तछँ ता।रामूकै काम तिमित्त औंठि सँग ली जान्छु दुतै हँमता॥क्या डर्‌ क्षार समुद्र तन सहजै पौँचन्छु लंका भनी।चारै पाउ जमिन्‌ विषे धसि कुद्या हेर्दै तमसा पति ॥२॥दक्षिण्‌ तरफ्‌ मुख गरीकन कुद्न वस्ता।अपर्‌ नजर्‌ दि अघिका दुइ पाउ धस्ता॥सोझो गराइकन घाँटि कुद्या जसै ता।वाग्रु सरी हुन्‌ गया हनुमान्‌ तसै ता॥३॥
उसी दिन क्षीरसागर पार कर लेने की कामना से उन्होने मन ही मनश्रीराम के चरणारविन्दों का ध्यान कर अपने वीरों से कहा-हे वीरो ! मैंसागर के पार पहुँच कर बडी तेजी से जाकर सीताजी से भेट कङँगा । १पापी जन भी केवल राम का स्मरण करके ही संसार-सागर पार कर लेतेहँ। रामके ही काय से यह अँगुठी लेकर जाउँगा । मैं तो उनका हीदूत हुँ, डर किस बातका है ? क्षीरसागर पार कर णशीघ्न ही लंकापहुँचूँगा । ऐसा कह कर चारों पाँव-हाय धरती पर जमा कर कौतुक केसाथ कूदे । २ हनुमान ने दक्षिण की ओर मूँह करके कृदने के लिए अपरदृष्टि उठायी और आगे के दोनों हाथों को जमा कर जैसी ही गर्दैन उठायी
उसी दिन क्षीरसागर पार कर लेने की कामना से उन्होने मन ही मनश्रीराम के चरणारविन्दों का ध्यान कर अपने वीरों से कहा-हे वीरो ! मैंसागर के पार पहुँच कर बडी तेजी से जाकर सीताजी से भेट कङँगा । १पापी जन भी केवल राम का स्मरण करके ही संसार-सागर पार कर लेतेहँ। रामके ही काय से यह अँगुठी लेकर जाउँगा । मैं तो उनका हीदूत हुँ, डर किस बातका है ? क्षीरसागर पार कर णशीघ्न ही लंकापहुँचूँगा । ऐसा कह कर चारों पाँव-हाय धरती पर जमा कर कौतुक केसाथ कूदे । २ हनुमान ने दक्षिण की ओर मूँह करके कृदने के लिए अपरदृष्टि उठायी और आगे के दोनों हाथों को जमा कर जैसी ही गर्दैन उठायी
Line 1,661: Line 1,676:
क्रके सेवक बन कर हनुमान वहाँ खड्रे हो गये। ' “सवंस्व देता हूँ"--कहते हुए रघुनाथ ने हनुमान को गोद मैं बैठा लिया और समझातेै हुएबोले कि यही सवेस्व है। वे बोले कि प्रसन्न होकर अपनी गोद अपंण करदेने के बाद मेरे पास कुछ नहीं शेष रहता। अत; वुम्है सबप्राप्त हो गया, यह बात कहाँ तंक बताऔँ ? गोद मैं रख कर जैसे ही-(राम चे) यह्‌ आदेश दिया हनुमान, आनन्द से ओतप्रोत हो गये-प्रेमाश्ुबहाते हुएवे (राम की) शरण में पड्के रहे । १५१-१५२ , धन्य हैँ यहहनुमान ! हरि के भक्तो मैं इनके समान कोई नही । ईंसौ भक्ति की शक्तिसे ही उन्है हरि की गोद प्राप्त हुई । इसी लिए वे जगत्‌ मै अधिक धन्यकहलाये। १५३ इनकी (हनुमान की) पूजा केवल तुलसी चढा करकी जातीहै। जो: ऐसा करते हैँ, वे लोग भवसागर पार तर जातैहुँ। येतो उन्ही प्रभु्‌जी के दूत हँ, अतः इनका पुर्णतया वर्णन करसकना भी अत्यधिक कठिन है । १५४ . " ॥
क्रके सेवक बन कर हनुमान वहाँ खड्रे हो गये। ' “सवंस्व देता हूँ"--कहते हुए रघुनाथ ने हनुमान को गोद मैं बैठा लिया और समझातेै हुएबोले कि यही सवेस्व है। वे बोले कि प्रसन्न होकर अपनी गोद अपंण करदेने के बाद मेरे पास कुछ नहीं शेष रहता। अत; वुम्है सबप्राप्त हो गया, यह बात कहाँ तंक बताऔँ ? गोद मैं रख कर जैसे ही-(राम चे) यह्‌ आदेश दिया हनुमान, आनन्द से ओतप्रोत हो गये-प्रेमाश्ुबहाते हुएवे (राम की) शरण में पड्के रहे । १५१-१५२ , धन्य हैँ यहहनुमान ! हरि के भक्तो मैं इनके समान कोई नही । ईंसौ भक्ति की शक्तिसे ही उन्है हरि की गोद प्राप्त हुई । इसी लिए वे जगत्‌ मै अधिक धन्यकहलाये। १५३ इनकी (हनुमान की) पूजा केवल तुलसी चढा करकी जातीहै। जो: ऐसा करते हैँ, वे लोग भवसागर पार तर जातैहुँ। येतो उन्ही प्रभु्‌जी के दूत हँ, अतः इनका पुर्णतया वर्णन करसकना भी अत्यधिक कठिन है । १५४ . " ॥
॥। सुन्दरकाण्ड समाप्त ॥|
॥। सुन्दरकाण्ड समाप्त ॥|
- युद्ध काण्ड
 
==युद्ध काण्ड==
. लङ्कापुरी सकल खाक्‌ गरि सैन्य मारी ।
. लङ्कापुरी सकल खाक्‌ गरि सैन्य मारी ।
फेरी समुद्र सहजै चरि आइ वारी॥
फेरी समुद्र सहजै चरि आइ वारी॥
Line 2,416: Line 2,432:
॥ इति युद्धकाण्ड समाप्त ॥
॥ इति युद्धकाण्ड समाप्त ॥
ही स्तियाँ संतान पाने के सुख से ही वंचित रह जाती हैएक बन्ध्या काजीवन ही व्यतीत करती हैँ। प्रभु के स्मरण करते रहने से यह सभी व्याधायें,ढुध्व्व तथा भय नहीँ रह जाते । ३७५ श्रीराम की इस पावन कथाको जो लोग सुनते या कहते हैँ उनसे समस्त देवगण सदैव प्रसन्न रहतेहुँ और सदा सहायक रहते है। मानव जीवन में आने वाली समस्तविघ्न बाधायें दूर रहती हँ, समाज मै उनका आदर बढ्ता है और सभीउनसे प्रेम-पूर्ण ब्यवहार रखते है । ३७९ प्रभु की क्रपा से आधिन-व्याधिसभी नष्ट हो जाते हैँ। धन-धान्य एवम्‌ सन्तान से मनुष्य परिपूर्णरहता है और दिन पर दिन उसके जीवन मेंइन सुखों कीवृद्धि होतीरहृती है । इष्ट-मित्न तथा कुटुम्ब के सदस्य श्रद्धा-आदर तथा प्रेम देतेहँ। प्रभु की प्रशंसा कहांतक की जाये। उनके भजन मनसेजोकरता है वह्‌ संसार की समस्त बाधाओं से मुक्ति पाकर तर"जाता है ।३०५० शम्भुने भी श्रीराम नाम के समान सव वेदों का मन्थचकिया अर्थात्‌ अध्ययन किया। उन्हँ भी कोई दूसरे तत्व की प्राप्ति नहींहुई । अतः उसी तत्व का ज्ञान प्राप्तकर उन्ह्राने प्रेमपू्वेक पावेती जीको आध्यात्म रूपसे प्रदान किया । जो प्रेम-पूर्वंक रामकथा को सुनता औरकहृता है वह सहज ही संसार से पार होकर किनारे आ जाता है। ३०१॥ इति युद्धकांड समाप्त ॥
ही स्तियाँ संतान पाने के सुख से ही वंचित रह जाती हैएक बन्ध्या काजीवन ही व्यतीत करती हैँ। प्रभु के स्मरण करते रहने से यह सभी व्याधायें,ढुध्व्व तथा भय नहीँ रह जाते । ३७५ श्रीराम की इस पावन कथाको जो लोग सुनते या कहते हैँ उनसे समस्त देवगण सदैव प्रसन्न रहतेहुँ और सदा सहायक रहते है। मानव जीवन में आने वाली समस्तविघ्न बाधायें दूर रहती हँ, समाज मै उनका आदर बढ्ता है और सभीउनसे प्रेम-पूर्ण ब्यवहार रखते है । ३७९ प्रभु की क्रपा से आधिन-व्याधिसभी नष्ट हो जाते हैँ। धन-धान्य एवम्‌ सन्तान से मनुष्य परिपूर्णरहता है और दिन पर दिन उसके जीवन मेंइन सुखों कीवृद्धि होतीरहृती है । इष्ट-मित्न तथा कुटुम्ब के सदस्य श्रद्धा-आदर तथा प्रेम देतेहँ। प्रभु की प्रशंसा कहांतक की जाये। उनके भजन मनसेजोकरता है वह्‌ संसार की समस्त बाधाओं से मुक्ति पाकर तर"जाता है ।३०५० शम्भुने भी श्रीराम नाम के समान सव वेदों का मन्थचकिया अर्थात्‌ अध्ययन किया। उन्हँ भी कोई दूसरे तत्व की प्राप्ति नहींहुई । अतः उसी तत्व का ज्ञान प्राप्तकर उन्ह्राने प्रेमपू्वेक पावेती जीको आध्यात्म रूपसे प्रदान किया । जो प्रेम-पूर्वंक रामकथा को सुनता औरकहृता है वह सहज ही संसार से पार होकर किनारे आ जाता है। ३०१॥ इति युद्धकांड समाप्त ॥
उत्तरकाण्ड
 
==उत्तरकाण्ड==
शम्भूका मुखदेखि राज्य अभिषेक्‌सोधिन्‌ पावेतिले सदाशिवजिथ्यैँपृथ्वीमा कति वर्षे राज्‌ हुन गयोकस्ता रीतूसित राज्य छोडि रघुनाथ्‌शम्भो ! श्रीरघुनाथका जति त छन्‌आज्ञा आज हवस्‌ म सुन्छु भगवान्‌!
शम्भूका मुखदेखि राज्य अभिषेक्‌सोधिन्‌ पावेतिले सदाशिवजिथ्यैँपृथ्वीमा कति वर्षे राज्‌ हुन गयोकस्ता रीतूसित राज्य छोडि रघुनाथ्‌शम्भो ! श्रीरघुनाथका जति त छन्‌आज्ञा आज हवस्‌ म सुन्छु भगवान्‌!
यो बिन्ती जब शम्भुका चरणमासब्‌ लीला. प्रभुका कह्या शिवजिलेरावण्‌ मारि उतारि भारि भरुमिकोजानी एक्‌ दित ता गया क्रषि अनेक्‌दुर्वासा भृगु अञ्जिरा इ पत्ति छन्‌
यो बिन्ती जब शम्भुका चरणमासब्‌ लीला. प्रभुका कह्या शिवजिलेरावण्‌ मारि उतारि भारि भरुमिकोजानी एक्‌ दित ता गया क्रषि अनेक्‌दुर्वासा भृगु अञ्जिरा इ पत्ति छन्‌
Line 2,933: Line 2,950:
भ्ोगकर संसार से तर जाते हैँ। २५७
भ्ोगकर संसार से तर जाते हैँ। २५७
॥ भानुभक्त विरचित नेपाली रामायण समाप्त ॥
॥ भानुभक्त विरचित नेपाली रामायण समाप्त ॥
[[category: step2]]
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